कवर्धा, 16 फरवरी 2022। कबीरधाम जिले में 92 हजार हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में चने की खेती की जाती है और रबी में सबसे ज्यादा रकबा चने का है, लेकिन अगर उत्पादकता की बात की जाए तो आज भी चने की उत्पादकता 1230 किलोग्राम, हेक्टेयर ही है। जिसका प्रमुख कारण रोग एवं कीट व्याधि है। कीट व्याधियों के प्रबंधन के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा द्वारा लगातार प्रक्षेत्र परीक्षण एवं अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन के माध्यम से उन्नत कृषि तकनीक को प्रसारित करने का कार्य कर रहे एवं जिले में फसलों के कीट व्याधि के रोकथाम हेतु प्रक्षेत्र भ्रमण कर उचित प्रबंधन सलाह कृषकों को बताया जाता है। चना की बीमारी की समस्या से फसल प्रारंभिक अवस्था से लेकर पकने की अवस्था में देखा जाता है। जिसको किसानों द्वारा चने का उकठा बीमारी से जानते है। जबकि चने में यह चने की प्रमुख बीमारी कालर राट के कारण चने बुआई के प्रारंभिक अवस्था से पैच में मरना शुरूआत होता है। जिसके कारण चने में 20-30 प्रतिशत तक नुकसान पाया गया है। उपरोक्त बीमारी के प्रबंध के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा ट्राइकोडर्मा जैव फफूंद नाशक का उपयोग के लिए किसानों के सलाह दी जाती है, जिसको सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले है।
कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञनिक डॉ. बी.पी. त्रिपाठी ने बताया कि गत वर्ष भाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर मुम्बई के पौध रोग वैज्ञानिक डॉ. पी. के. मुखर्जी एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के पौध रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. ए.के. कोटस्थाने के तकनीकी मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा द्वारा भाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर मुम्बई द्वारा तैयार किया गया। उन्होंने बताया कि ट्राइकोडर्मा म्यूटेन्ट कल्चर को कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा किसानों के खेतो में परीक्षण के लिए उपयोग किया गया था कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा इस वर्ष कुल 75 एकड़ में म्यूटेन्ट कल्चर जी-2 को बीज उपचार के माध्यमो से चने में कॉलर रॉट प्रबंधन के लिए ट्रायल कन्डक्ट किया गया था जिसके परिणाम बहुत ही सकारात्मक एवं कृषकों द्वारा बताया गया कि ट्राइकोडर्मा से उपचारित खेत में चने की बीमारी बहुत कम देखने को मिला है। अपेक्षा अनुपचारित फसल में चनें की बीमारी बहुत ज्यादा मात्रा में देखने को मिल रही है। हम कल्चर के उपयोग से बहुत खुश है।

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